क्या हम उस व्यक्ति का जन्मदिन मनाते हैं जो हर पल मरता है (और हर पल जन्म लेता है) या उसका जो कभी नहीं मरता?
हमारे पास केवल दो चीज़ें हैं –
शरीर – जो पदार्थ है, हमेशा गतिशील रहता है और हर पल बदलता रहता है।
खाना और मल त्यागना।
पीना और पेशाब करना।
साँस लेना और छोड़ना।
हमारे शरीर निरंतर बदलते रहते हैं।
श्रेणिक इस वाक्य के समाप्त होने पर वही श्रेणिक नहीं रह जाता जो वह शुरू होने से पहले था।
जब हैप्पी बर्थडे गाया गया, तो वह एक अलग श्रेणिक था, और जिसने मोमबत्ती बुझाई, वह भी एक अलग श्रेणिक था।
श्रेणिक कुछ ही सेकंड में बदल गया।
तो फिर किसका जन्मदिन मनाया जा रहा है?
एक साल की तो बात ही छोड़िए, हर सेकंड एक नया श्रेणिक लेकर आता है।
हमारा दूसरा घटक हमारी आत्मा है, जो स्वयं जीवन है, वह चेतना जो कभी नहीं मरती और कभी जन्म नहीं लेती (अजात)।
हम आत्मा का जन्मदिन कैसे मना सकते हैं?
इस चर्चा का उद्देश्य उत्तर ढूँढ़ना नहीं है। कोशिश मत करो।
कोई उत्तर नहीं है।
इसका सबसे अच्छा उत्तर यही है कि उत्तर ढूँढ़ना बंद कर दो (मन को बंद कर दो) और मौन हो जाओ।
संसार से दूर चले जाओ, ऐसी अनगिनत गतिविधियों में लीन हो जाओ।
भीतर जाओ, विशाल, रहस्यमय चेतना में विलीन हो जाओ।
वह जागरूकता, जो है, फिर भी अज्ञेय है।
यह रहस्यमय मौन प्रत्येक साधक की आध्यात्मिक यात्रा का अंतिम पड़ाव हो।
“मेरे” “जन्मदिन” पर, यही मेरी सभी के लिए अंतिम कामना है।