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ज्ञात (ज्ञात), अज्ञात (अज्ञात), और अज्ञेय (अज्ञेय)
हम ज्ञात (ज्ञात) और अज्ञात (अज्ञात – जो प्रयास से ज्ञात हो सकता है) के बीच में फंसे हुए हैं।
और हमारा मन ही सब कुछ जानता है – (ज्ञात)।
संसार केवल ये दो चीजें प्रदान करता है – इससे अधिक कुछ नहीं।
चाहे आप डॉक्टर बनें या रॉकेट वैज्ञानिक, डॉक्टर या रॉकेट वैज्ञानिक होने का ज्ञान आपको तुरंत नहीं पता था, बल्कि प्रयास से, अब आप जानते हैं; इसलिए आप अज्ञात (अज्ञात) से ज्ञात (ज्ञात) की ओर चले गए।
संसार में हमने कुछ हासिल किया है और दूसरों को प्रभावित करने के लिए इसका बखान करते हैं।
हम जीवन भर विभिन्न ज्ञान के पीछे भागते रहते हैं – शास्त्र और व्यावसायिक, अधिक मित्र, अधिक इंटरनेट, अधिक समाचार, आदि।
और हम सोचते हैं कि बस इतना ही है।
लेकिन कुछ ऐसा है जो हमारा मन नहीं जान सकता।
और यही अज्ञेय की दुनिया है…
[9:17 AM, 5/1/2025] श्रेणिक शाह: संसार (गुरुओं, उपदेशकों, शास्त्रों या किसी अन्य स्रोत से) से प्राप्त ज्ञान दो कौड़ी का है, बस आपको एक दिशा दिखाने के लायक है – ध्यान।
अंदर से प्राप्त ज्ञान अमूल्य है।
कोई कैसे जान सकता है कि आप कौन हैं?
केवल आप ही जान सकते हैं।
कौन जान सकता है कि आप अपने मन में कौन सी वृत्तियाँ और वासनाएँ छिपा रहे हैं?
केवल आप ही जान सकते हैं।
आपको उनका सामना साहसपूर्वक और धैर्य के साथ, ध्यान में करना होगा।
और यह बिल्कुल ठीक है।
ध्यान एक समुद्रमंथन (शास्त्रों में मन के सागर के मंथन के बारे में एक पौराणिक कहानी) है, जहाँ सबसे पहले विष (जहर) निकलेगा और फिर अमृत (जीवन का अमृत, अमरता)।
विचारहीनता का अमृत अमूल्य है।
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