मन केवल विशाल चेतना की उपज है और दैनिक घटनाओं से निपटने का एक साधन है।
और, साधन तो साधन ही है; वह अपने निर्माता को नहीं जान सकता।
तलवार, चाहे कितनी भी तेज़ क्यों न हो, अपने निर्माता को कैसे जान सकती है?
विचार, विश्वास, अवधारणाएँ, कल्पनाएँ, आपसी विचार-विमर्श, शब्दों से भरे शास्त्र, गुरु और उपदेशक आपको मार्गदर्शन तो दे सकते हैं, लेकिन ईश्वर-साक्षात्कार तक नहीं पहुँचा सकते।
आध्यात्मिक पथ पर मन की निरर्थकता का बोध ही ईश्वर-साक्षात्कार तक ले जा सकता है।
मन आपको जो सबसे महत्वपूर्ण सहायता दे सकता है, वह है आपको अपने भीतर ले जाना और सही समय आने पर स्वयं को समर्पित कर देना।
केवल मन का अभाव ही आपको ईश्वर-साक्षात्कार की ओर ले जाता है; यही आपके और ईश्वर के बीच एकमात्र बाधा है।
जो लोग संसार में रमते हैं और सौंदर्य, प्रसिद्धि, धन और संसार द्वारा प्रदान किए जाने वाले इंद्रिय-सुखदायक भोजन के पीछे भागते रहते हैं, साथ ही साथ ईश्वरत्व को पाने का प्रयास करते रहते हैं, वे केवल इसके बारे में स्वप्न ही देख सकते हैं; यह उनके जीवनकाल में कभी नहीं होगा।
कोई भी व्यक्ति एक साथ दो घोड़ों पर सवार होकर दौड़ नहीं जीत पाया है।
केवल साक्षीभाव (द्रष्टा-दृष्टि) ही इसे घटित कर सकता है।
साक्षीभाव साक्षी को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में जन्म देता है, और अंततः उसे यह बोध होता है कि वही एकमात्र सत्य है, संसार (साक्षी) नहीं।