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सब कुछ चेतना है।
हर पल चेतना की रचना है, न तुम्हारा और न मेरा।
जीवन एक-एक करके, रहस्यमयी तरीके से पल लाता रहता है।
फिर भी, हम हर पल की ज़िम्मेदारी लेने के लिए इतने जुनूनी क्यों हैं?
अनंत मौन की अवस्था का अनुभव हमें यह एहसास कराता है कि चाहे ध्यान के दौरान शून्यता से उत्पन्न होने वाले विचार हों या वास्तविक जीवन में निरंतर बदलते क्षण, वे सभी रहस्यमय चेतना से उत्पन्न होते हैं और उसी की दया पर निर्भर होते हैं, और उसी में पुनः विलीन हो जाते हैं।
यह समझकर, अहंकार (और उससे जुड़े दुखों) का समाधान शीघ्रता से होता है।
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